बुकर पुरस्कार से सम्मानित होनेवाली हिंदी साहित्य की एकमात्र उपन्यासकार
डोना पोउला: ‘कोई सोचता नहीं पर सोचें तो सोचेंगे कि हवा तन के भीतर के द्रव को छेड़ दे तो क्या नहीं होता. विमान 27 हज़ार फीट की ऊंचाई से जब 7 हज़ार पे ढुलक आता है तो हवा कान पे ढक्कन लगा देती है. हर जुम्बिश पर ढक्कन को हल्का सा हिलाती है कि थोड़ी हवा पीछे घुस जाए और अगले झटके पे धीमे धीमे दर्द की सीटी देती निकले. कभी देर तक ढक्कन लगाये रखती है कि निकलने का रास्ता न पाए, तब सीटी अन्दर ही अन्दर मार ऊधम मचाती है, कहीं कान से नीचे कूदाफांदी करती, कहीं गाल में नस बन फड़फड़ाती, कहीं आंखों के पपोटों के पीछे छुक छुक चलती, कहीं भवों के नीचे पंख बन फड़ फड़ करती. कहीं गाल में नस बन फड़फड़ाती, कहीं आंखों के पपोटों के पीछे छुक छुक चलती, कहीं भवों के नीचे पंख बन फड़ फड़ करती. डर के डॉक्टर हकीम वैद्य बुलाओ जो बताते हैं द्रव का सन्तुलन गड़बड़ाया है. मगर गड़बड़ाया किसने अगर हवा ने नहीं? सदियों से स्थिर द्रव ठोस जमा नहीं रह सकता. हवा उसे हिला देती है, उसकी मुर्दान हिला देती है और और फिर वो नन्ही नन्ही फुरकें मारने लगता है.स्मृति कल्पना दर्द भर्त्सना फिरते हैं जब मां हवा का कतरा बन सारे में फिरती है? ‘- गीतांजलि श्री की लिखी उपन्यास ‘रेत समाधि ‘ के कुछ अंश।
25 जनवरी 2024 को, गोवा की एहसास महिलाओं ने बुकर पुरस्कार विजेता गीतांजलि श्री के साथ कलम के अपने दूसरे संस्करण की मेजबानी की। जानी मानी लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास रेत समाधि की जबरदस्त चर्चा रही है। रेत समाधि दिग्गज लेखिका गीतांजलि श्री का पांचवां उपन्यास है और हिंदी की किसी रचना को प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार हासिल होनेवाला पहला उपन्यास।
श्री का जन्म 12 जून 1957 को उत्तर प्रदेश राज्य के मैनपुरी शहर में हुआ था। उनके पिता अनिरुद्ध पांडे एक सिविल सेवक थे, उनका परिवार उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में रहता था। श्री का कहना है कि उत्तर प्रदेश में हुई परवरिश के साथ-साथ अंग्रेजी में बच्चों की किताबों की कमी ने उन्हें हिंदी से गहरा जुड़ाव दिया।
12 जून 1957 को जन्मी गीतांजलि श्री जिन्हें गीतांजलि पांडे के नाम से भी जाना जाता है, नई दिल्ली, भारत में स्थित एक भारतीय हिंदी भाषा की उपन्यासकार और लघु-कहानी लेखिका हैं। साल 2000 में लिखा उपन्यास माई को 2001 में क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड के लिए चुना गया था, जबकि नीता कुमार द्वारा इसका अंग्रेजी अनुवाद 2017 में नियोगी बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया । 2022 में, उनके उपन्यास रेत समाधि (2018), का अंग्रेजी में अनुवाद टॉम्ब ऑफ सैंड केनाम से किया गया, जो डेज़ी रॉकवेल ने किया और अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता।कथा साहित्य के अलावा, उन्होंने प्रेमचंद पर आलोचनात्मक रचनाएँ भी लिखी हैं।
रेत समाधि की कहानी दिलचस्प है , जिसमे थोड़ा हास्य भी है। यह कहानी, उत्तरी भारत में स्थापित, अस्सी वर्षीय नायिका, माँ के बारे में है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद गहरे अवसाद से उबरती है और अपने बच्चों के कारण बहुत चिंतित रहती है, पाकिस्तान की यात्रा करने की इच्छा व्यक्त करती है – अपनी जड़ों की ओर और इस प्रकार चंद्रप्रभा देवी के रूप में उनकी पहचान पुनः प्राप्त हो जाती है।
कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण एवं परिचय श्रुति जयसवाल जुवारकर द्वारा किया गया। गीतांजलि श्री जी से वार्तालाप का संचालन वैशाली पुराणिक जोशी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन गौरप्रिया पाई केन द्वारा दिया गया और ताज के ग्रुप क्लस्टर जीएम अश्वनी आनंद द्वारा गीतांजलि श्री जी को डोकरा कला की मूर्ति भेंट की गई। यह कार्यक्रम प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा श्री सीमेंट्स के सहयोग से उनकी सीएसआर पहल के एक भाग के रूप में आयोजित किया गया था। होटल ताज सिडडे दा गोवा कार्यक्रम के हॉस्पिटैलिटी पार्टनर थे।
गीतांजलि श्री थियेटर के लिए भी लिखती हैं। इन्हें ‘वनमाली राष्ट्रीय पुरस्कार’, ‘कृष्ण बलदेव वैद पुरस्कार’, ‘कथा यू.के. सम्मान’, ‘हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान’ और ‘द्विजदेव सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है। ये रेज़िडेंसी और फ़ेलोशिप के लिए स्कॉटलैंड, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, आइसलैंड, फ्रांस, कोरिया, जापान इत्यादि देशों में गई हैं। इनके उपन्यास ‘रेत समाधि’ को 2021 के एमिले गुइमेट प्राइज की शॉर्ट लिस्ट में भी शामिल किया गया था।
Author: Goa Samachar
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