नई दिल्ली : 2020 के बाद से पूर्वी लद्दाख की वास्तविकताओं को देखते हुए चीन की ओर महत्वपूर्ण और संवेदनशील सैन्य जानकारी की चोरी रोकना अहम है.वैसे तो भारत ने 250 के करीब चीनी सॉफ्टवेयर और ऐप्लिकेशंस पर रोक लगाया है, लेकिन ये काफी नहीं है। चीन की स्मार्ट तकनीकों से राष्ट्रीय सुरक्षा को पेश ख़तरों का सक्रियता से निपटारा करना निहायत ज़रूरी है. कुछ साल पहले तक तमाम स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में धड़ल्ले से नज़र आने वाली चीनी सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी और ऐप्लिकेशंस को अब प्रतिबंधों और रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि चीन से अप्रत्यक्ष संपर्कों वाली तकनीक अब भी नीतिगत हस्तक्षेपों को धता बता रही हैं. इस कड़ी में ख़ासतौर से इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और SMART उत्पाद से जुड़ी टेक्नोलॉजी शामिल हैं, जो ख़तरनाक सुरक्षा जोख़िम पैदा करते हैं.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) सेंसर, प्रसंस्करण क्षमता, सॉफ्टवेयर और अन्य तकनीकों वाले उपकरणों का वर्णन करता है जो इंटरनेट या अन्य संचार नेटवर्क पर अन्य उपकरणों और प्रणालियों के साथ डेटा को जोड़ते हैं और आदान-प्रदान करते हैं। इंटरनेट ऑफ थिंग्स में इलेक्ट्रॉनिक्स, संचार और कंप्यूटर विज्ञान इंजीनियरिंग शामिल है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स को एक मिथ्या नाम माना गया है क्योंकि उपकरणों को सार्वजनिक इंटरनेट से कनेक्ट करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें केवल एक नेटवर्क से कनेक्ट करने की आवश्यकता है, और व्यक्तिगत रूप से पता करने योग्य होना चाहिए।
भारतीय सेना को चीन से जुड़े स्मार्ट तकनीकों और IoT के ज़रिए डेटा लीक और अतिक्रमणों को रोकने की क़वायद में आगे रहना होगा. एक सुसंगत और संस्थागत दृष्टिकोण ये सुनिश्चित कर सकता है. इस हक़ीक़त से नज़र फेर लेने से देश की सेना के लिए भारी असुरक्षाएं पैदा हो सकती हैं. सेना को उन सैन्य क्षेत्रों में इन उत्पादों से पैदा होने वाले तमाम जोख़िमों और डेटा लीक का मुक़ाबला करने के लिए औपचारिक नियम और प्रक्रियाएं तय करनी चाहिए, जहां ये उत्पाद अब तक प्रतिबंधित नहीं हैं.
Author: Goa Samachar
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