भारत की वित्त मंत्री ने 1 फरवरी, 2025 को आम बजट पेश किया. इससे पहले उन्होंने 23 जुलाई, 2024 को बजट पेश किया था. 1 तारीख के बजट-भाषण में उन्होंने जुलाई, 24 के बजट का कई बार उल्लेख किया, शायद इसलिए कि उसमें सरकार के बड़े आर्थिक और नीतिगत फ़ैसलों के साथ-साथ ख़र्चों का भी ब्योरा दिया गया था. इसी कारण इस बजट को जुलाई-बजट की अगली कड़ी मानना चाहिए.
यहां बजट के उन प्रस्तावों की चर्चा की गई है, जो शहरों से जुड़े हैं, और उनका शहरी जनजीवन पर क्या असर पड़ेगा, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण किया गया है.
बजट के पैराग्राफ 8 में उन सुधारों से हासिल होने वाले लक्ष्यों का ज़िक्र है, जिनको भारत में लागू करने की ज़रूरत है. इन लक्ष्यों को छह हिस्सों में बांटा गया है, जिनका उद्देश्य भारत की विकास-क्षमता और वैश्विक-प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है. इनमें तीसरा लक्ष्य है, शहरी विकास. बजट मानता है कि भारत की विकास-गाथा में शहरों की सेहत एक अनिवार्य शर्त है. संयोग से, जुलाई के बजट में भी शहरी विकास पर ख़ासा ज़ोर दिया गया था, जिसमें सात अलग-अलग विषयों का ज़िक्र किया गया था, जो शहरों से ही जुड़े थे. ये विषय थे- ‘विकास-केंद्र के रूप में शहर’, ‘शहरों का सृजनात्मक पुनर्विकास’, ‘सुगम यातायात सुविधाओं के साथ शहरों का विकास’, ‘शहरी और किराये के आवास’, ‘जलापूर्ति’, ‘सीवर और साफ-सफाई की व्यवस्था’, ‘फुटपाथ बाजार और स्टांप ड्यूटी’. इनमें से ज़्यादातर का ज़िक्र इस बार के बजट में फिर से किया गया है.
चूंकि शहरों में गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसलिए पैराग्राफ 49 और 50 में उनकी विशेष चर्चा की गई है. बजट में कहा गया है कि सरकार शहरी मज़दूरों की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी के लिए एक योजना लागू करेगी, ताकि उनकी आमदनी बढ़ सके, उनको स्थायी काम मिल सके और उनके जीवन में उल्लेखनीय सुधार हो सके. पैराग्राफ 50 में ‘पीएम स्वनिधि योजना’ का ज़िक्र है, जिसे बीते वर्षों में लागू किया गया है. इस योजना ने अब तक 68 लाख से अधिक रेहड़ी-पटरी वालों को फ़ायदा पहुंचाया है. इससे उन्हें अनौपचारिक तरीकों से ज़्यादा ब्याज दरों पर मिलने वाले कर्ज़ से राहत मिली है. इस सफलता से उत्साहित होकर बजट में इस योजना को नया रूप दिया गया है और बैंकों व यूपीआई से जुड़े क्रेडिट कार्ड की कर्ज़ सीमा बढ़ाकर 30,000 रुपये करने का प्रस्ताव दिया गया है. इससे रेहड़ी-पटरी वालों को सशक्त बनाने के लिए उनकी क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी.
यह देखना सुखद है कि शहरों में रेहड़ी-पटरी पर लगने वाले बाज़ार को धीरे-धीरे कानूनी गतिविधि के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है. यह शहरी गरीबों के लिए कमाने का एक व्यावहारिक ज़रिया है. हालांकि, फुटपाथों पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए दुकानदारों में बढ़ती होड़ के कारण शहरी योजनाओं में इनकी ज़रूरतों को पर्याप्त जगह नहीं मिल पाई है. इन दुकानदारों की सुविधाओं के लिए कई तरह के उपाय किए जाने की ज़रूरत है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है, राज्य के कानूनों को इनकी ज़रूरतों के हिसाब से बनाना. जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, भीड़भाड़ वाली जगहों पर रेहड़ी-पटरी वालों को व्यवस्थित कर पाना काफी मुश्किल काम बना रहेगा.
शहरी कार्यक्षेत्र के लिहाज से बजट का पैराग्राफ 57 सबसे अहम है. इसमें जुलाई, 24 के बजट-प्रस्तावों का उल्लेख किया गया है और उन्हें आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया है. इसे और स्पष्ट करते हुए यह प्रस्ताव दिया गया है कि ‘शासन, नगरपालिका/ नगरनिगम सेवाओं, शहरी भूमि और नियोजन से जुड़े शहरी क्षेत्रों में सुधार को बढ़ावा दिया जाएगा’. इस मुद्दे पर मैं लेख के अंतिम हिस्से में अपनी बात रखूंगा.
पैराग्राफ 58 और 59 में ‘शहरी चुनौती कोष’ के बारे में बताया गया है. ‘विकास केंद्रों के रूप में शहर’, ‘शहरों का सृजनात्मक पुनर्विकास’ और ‘जल व स्वच्छता’ से जुड़े प्रस्तावों को पूरा करने के लिए सरकार एक लाख करोड़ रुपये का यह कोष बनाएगी. इन प्रस्तावों की घोषणा जुलाई, 24 के बजट में भी की गई थी. इस पर विस्तार से बताते हुए पैराग्राफ 59 में कहा गया है कि भरोसेमंद परियोजनाओं में लागत की 25 प्रतिशत राशि इस कोष के तहत दी जाएगी. इसमें शहरों व राज्यों को भी हिस्सा देना होगा और बॉन्ड, बैंक कर्ज़ व सार्वजनिक-निजी, यानी सरकारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से उनको लागत का कम से कम 50 प्रतिशत हिस्सा जुटाना होगा. एक लाख करोड़ रुपये में से साल 2025-26 के लिए 10,000 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव बजट में किया गया है.
जैसे कि हालात हैं, लगता यही है कि विकास केंद्रों और चुनौती कोष का अधिकांश हिस्सा बड़े शहरों के खाते में ही चला जाएगा. अन्य ज़्यादातर शहरों के पास नगरपालिका बांड या बैंक कर्ज़ जुटाने के पर्याप्त साधन नहीं हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक सेहत बहुत खराब है. इसके अलावा, वे सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए भी मोल-तोल नहीं कर सकते. इस परिस्थिति में अधिकतर आर्थिक गतिविधियां बड़े शहरों में ही सिमटकर रह जाएंगी और अन्य शहरों का, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है, सर्वांगीण विकास प्रभावित होगा. आज शहरों में कई तरह के काम बाकी हैं और उनको पूरा करने का फंड शहरी निकायों के पास नहीं हैं. बजट में इस पर चर्चा की जा सकती थी. मगर ऐसा नहीं किया गया, जबकि यह एक ऐसा मामला है, जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंतन की ज़रूरत है.
हालांकि, बजट में ऐसे कई प्रस्ताव भी हैं, जो सीधे तौर पर शहरी जमा-ख़र्च से जुड़े हुए नहीं हैं, लेकिन वे शहरों पर अच्छा प्रभाव डाल सकते हैं। हवाई सेवाओं का विस्तार ऐसा ही एक प्रावधान है. पैराग्राफ 67 और 68 में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है. चूंकि हवाई अड्डे मुख्य रूप से शहरों में ही स्थित हैं, इसलिए इस प्रस्ताव से शहरों में यातायात और कारोबार को काफी फ़ायदा होगा. पैराग्राफ 67 में कहा गया है कि क्षेत्रीय संपर्क योजना ‘उड़ान’ ने 1.5 करोड़ मध्यमवर्गीय लोगों की हवाई यात्रा करने की उम्मीदों को पूरा किया है. इस योजना के तहत 88 हवाई अड्डों को आपस में जोड़ा गया है और 619 हवाई मार्ग चालू किए गए हैं. इससे सरकार को अगले दस वर्षों 120 नए गंतव्यों के लिए बेहतर क्षेत्रीय संपर्क शुरू करने और चार करोड़ यात्रियों को यात्रा सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रोत्साहन मिला है. इस योजना के तहत पहाड़ी क्षेत्रों, खासतौर से भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में हेलीपैड और छोटे-छोटे हवाई अड्डों पर भी ध्यान दिया गया है. इसके अलावा, बिहार में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे की सुविधा दी जाएगी, ताकि राज्य की ज़रूरतें पूरी हो सके. पटना हवाई अड्डे और बिहटा के ब्राउनफील्ड हवाई अड्डे के विस्तार की भी योजना बजट में प्रस्तावित है.
इसी तरह, मध्य वर्ग को कर में छूट और इस कारण उपभोग करने की उनकी क्षमता में होने वाली वृद्धि से शहरी अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी. आर्थिक गतिविधियों में 70 फीसदी महिलाओं की भागीदारी का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी इसमें सहायक साबित होगा. कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना, आईआईटी की सीटों का विस्तार, शिक्षा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में उत्कृष्टता केंद्र की शुरुआत और मेडिकल सीटों में वृद्धि के साथ-साथ सभी जिला अस्पतालों में डे-केयर सेंटर बनाने की घोषणा शहरों के लिए शुभ संकेत हैं.
अंत में, उन सुधारों पर कुछ शब्द, जिनका बजट में उल्लेख किया गया है. शासन, नगरपालिक/ नगरनिगम सेवाओं, शहरी भूमि और नियोजन के मामलों में शहरी सुधारों को बढ़ावा देने का संकल्प निश्चित ही स्वागत के योग्य है. जैसे-जैसे भारत शहरों में ढलता जा रहा है, उसके शहर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के चालक बनते जा रहे हैं. इसलिए, यह स्वाभाविक है कि आम बजट में शहरों की ओर अधिक ध्यान दिया जाए. इसके अलावा, बजट में जिन शहरी विषयों का ज़िक्र किया गया है, वहां सुधार की आस दशकों से रही है और जिनकी सख़्त ज़रूरत भी है. यदि शहरों को भारत की विकास-गाथा में बुनियादी स्तंभों के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो हमें शहरों के संस्थागत ढांचे को ठीक करने पर भी ध्यान देना होगा.
(आलेख साभार : ओआरएफ, लेखक : रामनाथ झा, विशिष्ठ फेलों, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन )
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Author: Goa Samachar
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